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भारतीय पंचांग और आयुर्वेद के अनुसार किस मौसम में क्या खाएं और क्या नहीं 2024 ?
भारत एक ऐसा देश है जहां मौसम के साथ-साथ भारतीय पंचांग का भी खास महत्व है। पंचांग के अनुसार मौसम बदलने के साथ-साथ हमारी जीवनशैली और खान-पान में बदलाव जरूरी होता है। आयुर्वेद, जो कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, इसमें पंचांग के हिसाब से भोजन की विशेष जानकारी दी गई है। यह पद्धति हमें यह सिखाती है कि मौसम के अनुसार सही भोजन का चयन कैसे किया जाए ताकि हम स्वस्थ रहें और बीमारियों से बच सकें।
पंचांग और आयुर्वेद का संबंध
पंचांग के अनुसार, साल को छह ऋतुओं में बांटा गया है:
- वसंत (चैत्र और बैसाख)
- ग्रीष्म (ज्येष्ठ और आषाढ़)
- वर्षा (श्रावण और भाद्रपद)
- शरद (आश्विन और कार्तिक)
- हेमंत (मार्गशीर्ष और पौष)
- शिशिर (माघ और फाल्गुन)
हर ऋतु का असर हमारे शरीर और मन पर अलग-अलग होता है। आयुर्वेद के अनुसार, प्रत्येक ऋतु में विशेष दोष (वात, पित्त, कफ) का प्रभाव बढ़ता है, जिसे संतुलित करने के लिए सही भोजन का सेवन करना आवश्यक है।
1. वसंत ऋतु (चैत्र और बैसाख)
वसंत ऋतु में कफ दोष का प्रभाव बढ़ता है, जिससे एलर्जी, सर्दी-खांसी, और श्वास संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इस मौसम में हल्का और ताजगी से भरपूर भोजन करना चाहिए, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करे और कफ दोष को संतुलित रखे।
हरी सब्जियाँ और सलाद: इस मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियाँ, जैसे पालक, मेथी, और सरसों का साग का सेवन करना लाभकारी होता है। ये सब्जियाँ शरीर को आवश्यक विटामिन और मिनरल्स प्रदान करती हैं।
फल: जैसे सेब, अमरूद, और अनार का सेवन करें। ये फल शरीर में जमा कफ को निकालने में मदद करते हैं और ताजगी देते हैं।
मसाले: हल्दी, अदरक, और काली मिर्च जैसे मसाले इस मौसम में उपयोगी होते हैं। ये शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं और कफ दोष को संतुलित रखते हैं।
2. ग्रीष्म ऋतु (ज्येष्ठ और आषाढ़)
ग्रीष्म ऋतु में पित्त दोष बढ़ता है, जो शरीर में गर्मी का कारण बनता है। इस समय हमें ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जो शरीर को ठंडक दें और पित्त दोष को संतुलित रखें।
पानी और पेय: इस मौसम में शरीर में पानी की कमी न होने पाए, इसलिए पानी, नारियल पानी, बेल का शरबत, और सत्तू का सेवन करें। ये पेय पदार्थ शरीर को ठंडक देते हैं और डीहाइड्रेशन से बचाते हैं।
हल्का और ठंडा भोजन: जैसे खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, दही, और छाछ। ये खाद्य पदार्थ पित्त दोष को नियंत्रित करते हैं और शरीर को ठंडक पहुंचाते हैं।
तैलीय और मसालेदार भोजन से बचें: ये खाद्य पदार्थ शरीर की गर्मी को बढ़ा सकते हैं, जिससे पेट में जलन और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
3. वर्षा ऋतु (श्रावण और भाद्रपद)
वर्षा ऋतु में वात दोष का प्रभाव बढ़ता है, जिससे पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इस मौसम में हमें ऐसा भोजन करना चाहिए जो पाचन में आसान हो और शरीर को ताजगी प्रदान करे।
हल्का और ताजा भोजन: जैसे दलिया, खिचड़ी, और सूप। इनका सेवन शरीर को आवश्यक पोषण देता है और पाचन को दुरुस्त रखता है।
ताजे फल: सेब, नाशपाती, और अमरूद जैसे फल पाचन के लिए अच्छे होते हैं और शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
मसाले और जड़ी-बूटियाँ: अदरक, हींग, और काली मिर्च का सेवन पाचन को बेहतर बनाता है और वात दोष को संतुलित रखता है।
4. शरद ऋतु (आश्विन और कार्तिक)
शरद ऋतु में पित्त दोष का प्रभाव फिर से बढ़ने लगता है, जो त्वचा की समस्याएं, एसिडिटी, और पेट में जलन का कारण बन सकता है। इस मौसम में ठंडक देने वाले और हल्के खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
शीतल और ठंडा भोजन: जैसे नारियल पानी, ककड़ी, और तरबूज। ये खाद्य पदार्थ शरीर को ठंडक प्रदान करते हैं और पित्त दोष को नियंत्रित रखते हैं।
फलों का सेवन: इस मौसम में अंगूर, सेब, और अनार जैसे फलों का सेवन लाभकारी होता है। ये फल शरीर में पित्त दोष को संतुलित करते हैं और त्वचा को स्वस्थ रखते हैं।
हल्का और ताजगी से भरपूर भोजन: पाचन को आसान बनाने के लिए हल्का और ताजगी से भरपूर खाना खाएं। मसालेदार और तैलीय भोजन से बचें।
5. हेमंत ऋतु (मार्गशीर्ष और पौष)
हेमंत ऋतु में वात दोष का प्रभाव कम होता है, जबकि कफ दोष बढ़ता है। इस मौसम में शरीर की पाचन शक्ति मजबूत होती है, जिससे हम पौष्टिक और भारी भोजन का सेवन कर सकते हैं।
तैलीय और पौष्टिक भोजन: घी, तिल का तेल, और सूखे मेवे जैसे बादाम, काजू, और अखरोट का सेवन करें। ये खाद्य पदार्थ शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं और त्वचा को पोषण देते हैं।
मसाले: अदरक, लहसुन, काली मिर्च, और हल्दी का सेवन करें। ये मसाले शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं।
सूप और सब्जियाँ: पालक, गाजर, और चुकंदर जैसी सब्जियाँ और इनके सूप इस मौसम में बहुत फायदेमंद होते हैं। ये शरीर को आवश्यक पोषण देते हैं और वात दोष को संतुलित रखते हैं।
6. शिशिर ऋतु (माघ और फाल्गुन)
शिशिर ऋतु में भी वात दोष का प्रभाव रहता है, इसलिए इस मौसम में हमें गर्म और पौष्टिक भोजन का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर की ऊर्जा और प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है।
गर्म और तैलीय खाद्य पदार्थ: जैसे घी, तिल का तेल, और ताजे मक्खन का सेवन करें। ये खाद्य पदार्थ शरीर को अंदर से गर्म रखते हैं और वात दोष को संतुलित करते हैं।
मसाले और जड़ी-बूटियाँ: जैसे अदरक, हल्दी, और लहसुन का सेवन इस मौसम में बहुत फायदेमंद होता है। ये शरीर को अंदर से गर्म रखते हैं और सर्दी-खांसी से बचाते हैं।
सूप और हरी सब्जियाँ: पालक, सरसों का साग, गाजर, और मूली जैसी सब्जियाँ और इनके सूप इस मौसम में बहुत फायदेमंद होते हैं।
निष्कर्ष
मौसम के हिसाब से भोजन का चयन करना न केवल आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पंचांग के अनुसार भी आवश्यक है। हर ऋतु का प्रभाव हमारे शरीर पर अलग-अलग होता है, और इसके अनुसार भोजन का चयन करके हम स्वस्थ रह सकते हैं और बीमारियों से बच सकते हैं।
इसलिए, आयुर्वेद और पंचांग के अनुसार अपने भोजन की आदतों को मौसम के अनुसार बदलें और स्वस्थ जीवन का आनंद लें।
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